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राह उल्फ़त की जो हो कर आये / रंजना वर्मा
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राह उल्फ़त की जो हो कर आये
दिल की नफ़रत को वो खो कर आये
पाक पानी जो चश्मे नम से गिरा
खुश्क दामन वो भिगो कर आये
सब की किस्मत में दुआएँ आयीं
हम ही दहलीज़ से रो कर आये
जागी आंखों में जो खुमारी है
वो समझते हैं कि सो कर आये
ग़म की लज़्ज़त तो वही जानेगा
अश्क़ से आँख जो धो कर आये
उन की राहों में थे फूलों के शज़र
नसीब में मेरे ठोकर आये
वो गुनाहों का बोझ ढोते हैं
बीज नफ़रत का जो बो कर आये