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राह ओ रस्म-ए-इब्तिदाई देख ली / जगत मोहन लाल 'रवाँ'
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राह ओ रस्म-ए-इब्तिदाई देख ली
इंतिहा-ए-बे-वफ़ाई देख ली
सामने तारीफ़ ग़ीबत में गिला
आप के दिल की सफ़ाई देख ली
अब नहीं मिलना किसी से भी पसंद
सब की अच्छाई बुराई देख ली
नाम भी दामन पे सुर्ख़ी का नहीं
दीदा ओ दिल की कमाई देख ली
बे-ख़बर हैं वो मेरे हालात से
नाला-ए-दिल की रसाई देख ली
इश्क़ अपना है फ़क़त इतना ‘रवाँ’
अच्छी सूरत आगे आई देख ली