राह का अब हो चुका पत्थर हूँ मैं।
इसलिए तो खा रहा ठोकर हूँ मैं॥
आपके क़दमों की आहट मिल गयीं
डर से बिल्कुल काँपता थर-थर हूँ मैं।
अब ग़ज़लकारों की राहें हों हसीं
पीढियों का बन चुका रहबर हूँ मैं।
आपकी यादें बनीं संजीवनी
हाशिए का खुशनुमा शायर हूँ मैं।
आ के घर पर बात कर लूँगा कभी
इस समय तो घर से ही बाहर हूँ मैं।
अनवरत चलता रहा चलता रहा
प्यास का मारा हुआ सागर हूँ मैं।