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राह घनघोर है जहाँ मैं हूँ / श्याम कश्यप बेचैन

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राह घनघोर है जहाँ मैं हूँ
धुँध हर ओर है जहाँ मैं हूँ

कान देता नहीं कहीं कोई
शोर ही शोर है जहाँ मैं हूँ

मन मरुस्थल की तरह सूखा है
तन सराबोर है जहाँ मैं हूँ

ऐसी गुत्थी है ज़िन्दगी, जिसका
ओर ना छोर है जहाँ मैं हूँ

फूल रोते हैं शबनमी आँसू
मातमी भोर है जहाँ मैं हूँ

सिर्फ मैं ही नहीं अँधेरे में
हर कोई चोर है जहाँ मैं हूँ

ख़ूब भरता है कान पर्दो के
घर चुग़लख़ोर है जहाँ मैं हूँ

पैर मज़बूत हैं कुचलते हैं
हाथ कमज़ोर है जहाँ मैं हूँ