राह चलते कष्ट होता है / शक्ति चट्टोपाध्याय / मीता दास
राह चलते हुए मुझे कष्ट होता है,
इसलिए राह के किनारे बैठा रहता हूँ ।
घने पेड़ के नीचे बैठा रहता हूँ ऐसे जैसे कोई सूखा पत्ता —
पत्ते की ही तरह रहता हूँ पड़ा,
कष्ट होता है, हवाओं से
उड़ जाऊँगा सोचकर डरता रहता हूँ,
जल भी सकता हूँ ।
राह पर चलते हुए कष्ट होता है,
इसलिए राह के किनारे ही बैठा रहता हूँ
पड़ा रहता हूँ टीले या किसी पुराने पत्थर की तरह —
आधुनिक नहीं, न ही गृहसज्जा के लिए किसी निश्चित पत्थर की तरह ।
काम का पत्थर नहीं, कि काम-काज छोड़कर पड़ा हुआ हूँ राह के किनारे,
राह के बीचोंबीच नहीं, ज़रा हटकर, राह के एक किनारे
राह के बीचोंबीच नहीं, जरा हटकर, राह के एक किनारे
घने पेड़ के नीचे पड़ा हुआ हूँ पत्थर की तरह ।
राह पर चलते हुए कष्ट होता है,
इसलिए राह के किनारे ही बैठा रहता हूँ ।
मीता दास द्वारा मूल बांग्ला से अनूदित