भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
राह जब सच की आये हुए हैं / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
राह जब सच की आये हुए हैं ।
क्यों कदम डगमगाये हुए हैं।।
रोज उम्मीद है टूट जाती
आस मन में जगाये हुए हैं।।
डूब कर पार जाना पड़ेगा
राह पर पग बढ़ाये हुए हैं।।
साथ में चाँद आए न आये
तारे तो जगमगाये हुए हैं।।
आँधियों से डरे बालकों को
गोद में माँ छुपाए हुए हैं।।
देश हित में समर्पित हृदय जो
धूल चंदन। लगाये हुए हैं।।
अपने बच्चों की खुशियों की खातिर
मायें आँचल बिछाये हुए हैं।।