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राह पर पत्थर बिछाए जा रहे हैं / उर्मिल सत्यभूषण

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राह पर पत्थर बिछाए जा रहे हैं
पाट सड़कों के बढ़ाए जा रहे हैं

ख़ास ही कुछ होंगे मेहमाँ इसलिए तो
शहर के रस्ते सजाए जा रहे हैं

पीठ पर हैं धूप के कोड़े बरसते
वो पसीने से नहाए जा रहे हैं

चल रहे हैं हाथ उनके अनवरत ही
वो हथौड़ों को चलाए जा रहे हैं

कर रहे हैं पेट की खातिर वो मेहनत
श्रमिक अपना दम लगाए जा रहे हैं

पांच तारा होटलों की शान में क्यों
स्वेद के धारे बहाए जा रहे हैं

तू बता उर्मिल कि वे सब किसलिए यूं
नींव के पत्थर बनाए जा रहे हैं