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राह में जो चल पड़े मोड़ों से घबराते नहीं / ब्रह्मजीत गौतम
Kavita Kosh से
राह में जो चल पड़े मोडों से घबराते नहीं
मंज़िलें पाये बिना हम लौटकर आते नहीं
यार, बगुलों से शराफ़त की उमीदें छोड़ दो
ये सियासतदान हैं, बेवज्ह मुसकाते नहीं
दूब पत्थर पर जमाने की क़वाइद व्यर्थ है
मांस-प्रेमी भेडियों को फूल-फल भाते नहीं
कोठियों में ही बुला लेते हैं वे अपने शिकार
आज के सय्याद जंगल में स्वयं जाते नहीं
ये अँधेरे राह के क्या ख़ुद-ब-ख़ुद मिट जायेंगे
इन से लड़ने को मशालें क्यों निकलवाते नहीं
बात बनती है ख़यालों से ग़ज़ल के शे’र में
वो कहेंगे क्या ग़ज़ल जिनको ख़याल आते नहीं
‘जीत’ ज़ालिम वक़्त से झगड़ा न करना चाहिए
भूलकर भी पत्थरों से शीशे टकराते नहीं