भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

राह से पत्थर हटाना चाहता हूँ / अवधेश्वर प्रसाद सिंह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

राह से पत्थर हटाना चाहता हूँ।
प्यार से पर्वत हिलाना चाहता हूँ।।

बाग में कलियाँ खिली हैं ढेर सारी।
मनचलों से मैं बचाना चाहता हूँ।।

यार को मिलते रहे सुख हर हमेशा।
अर्चना करना खुदा से चाहता हूँ।।

ऐ ग़ज़ल आओ ज़रा मुँह खोल भी दो।
मैं मधुर सुर लय सुनाना चाहता हूँ।।

कर रहे सेवा यहाँ साहित्य की जो।
मैं गले उनको लगाना चाहता हूँ।।

देश की हालत बिगड़ती जा रही है।
अब इसे फिर से सजाना चाहता हूँ।।

आपसी मतभेद को भी है मिटाना।
लक्ष्य अपना मैं बताना चाहता हूँ।।

न्याय अब मिलता कहाँ है कचहरी में।
गांव में चौपाल लाना चाहता हूँ।।

जो नहीं पढ़ते उसे भी है पढ़ाना।
आईना उनको दिखाना चाहता हूँ।।

दुश्मनों को प्रेम करना है सिखाना।
शांति का संदेश देना चाहता हूँ।।