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राह / सिद्धेश्वर सिंह
Kavita Kosh से
नहीं थी
कहीं थी ही नहीं
बीच की राह।
खोजता रहा
होता रहा तबाह।
जब तक याद आते पाश
तब तक
हो चुका था सब बकवास।