रिमझिम-रिमझिम पानी बरसे / कमलेश द्विवेदी
रिमझिम-रिमझिम पानी बरसे, झम-झम-झम-झम पानी बरसे।
लगता है अनगिन फौव्वारे जल बरसाते हैं ऊपर से।
चम-चम-चम-चम चमके बिजली,
घड़-घड़-घड़-घड़ गरजे बादल।
मेरी नज़र जिधर भी आती,
उधर दीखता है जल ही जल।
जाने कितना जल ये बादल लेकर आये हैं सागर से।
रिमझिम-रिमझिम पानी बरसे, झम-झम-झम-झम पानी बरसे।
भीग रही हैं मोटर-कारें,
भीग रही हैं सड़कें सारी।
भीग रहा मेरा घर-आँगन,
भीग रही फूलों की क्यारी।
सराबोर होकर लौटे हैं मेरे पापा जी दफ्तर से।
रिमझिम-रिमझिम पानी बरसे, झम-झम-झम-झम पानी बरसे।
मन करता है घर से बाहर,
जाकर मैं भी ख़ूब नहाऊँ।
फिर काग़ज़ की नाव बनाकर,
उसको पानी में तैराऊँ।
पर मम्मी जी नहीं निकलने देतीं मुझको बाहर घर से।
रिमझिम-रिमझिम पानी बरसे, झम-झम-झम-झम पानी बरसे।