भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रिमझिम बरसे पनियाँ / अवधी
Kavita Kosh से
♦ रचनाकार: अज्ञात
भारत के लोकगीत
- अंगिका लोकगीत
- अवधी लोकगीत
- कन्नौजी लोकगीत
- कश्मीरी लोकगीत
- कोरकू लोकगीत
- कुमाँऊनी लोकगीत
- खड़ी बोली लोकगीत
- गढ़वाली लोकगीत
- गुजराती लोकगीत
- गोंड लोकगीत
- छत्तीसगढ़ी लोकगीत
- निमाड़ी लोकगीत
- पंजाबी लोकगीत
- पँवारी लोकगीत
- बघेली लोकगीत
- बाँगरू लोकगीत
- बांग्ला लोकगीत
- बुन्देली लोकगीत
- बैगा लोकगीत
- ब्रजभाषा लोकगीत
- भदावरी लोकगीत
- भील लोकगीत
- भोजपुरी लोकगीत
- मगही लोकगीत
- मराठी लोकगीत
- माड़िया लोकगीत
- मालवी लोकगीत
- मैथिली लोकगीत
- राजस्थानी लोकगीत
- संथाली लोकगीत
- संस्कृत लोकगीत
- हरियाणवी लोकगीत
- हिन्दी लोकगीत
- हिमाचली लोकगीत
रिमझिम बरसे पनियाँ,
आवा चली धान रोपे धनियाँ।
लहरत बा तलवा में पनियाँ,
आवा चली धान रोपे धनियाँ।
सोने के थारी मं ज्योना परोसैं,
पिया कां जेंवाईं आईं धनियाँ।
झंझरे गेरुआ मं गंगा जल पनियाँ,
पिया कां घुटावैं आईं धनिया।
लौंगा-इलाची के बीरा जोरावैं,
पिया कां कूँचावैं आईं धनियाँ।
धान रोपि कर जब घर आयों,
नाच्यो गायो खुसी मनायो।
भरि जईहैं कोठिला ए धनियाँ,
आवा चली धान रोपै धनियाँ।