भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रिमझिम मेघा बरसे / प्रदीप शुक्ल
Kavita Kosh से
छाता लेकर गुल्लू भैया
निकल पड़े घर से
रिमझिम रिमझिम रिमझिम रिमझिम
रिमझिम मेघा बरसे
रेनी डे है
छुट्टी है
स्कूल नहीं है जाना
पर बारिश में उन्हें भीगने का
मिल गया बहाना
बून्दों से मिलने की ख़ातिर
कितना मन तरसे
रिमझिम मेघा बरसे
आगे आगे
मेंढक उछले
पीछे गुल्लू भैया
चली गई मकई के खेतों में
गुल्लू की नैया
कक्कू चिल्लाए हैं देखो
छत के ऊपर से
रिमझिम मेघा बरसे
गूल्लू यहाँ
मेड़ पर बैठे
देखें वीरबहूटी
जल्दी जल्दी खेत चरे
गूल्लू की गाय कलूटी
तभी अचानक भागे गुल्लू
कक्कू के डर से
रिमझिम मेघा बरसे