भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रिलीफ़ कैम्प में दीवाली / नोमान शौक़
Kavita Kosh से
कसमसाती शाम के खिलते बदन पर
ये सितारों का लिबास
जगमगाते शहर की ऊँची प्राचीरें
क़ुमक़ुमों से भर गई हैं
रौशनी ही रौशनी है हर तरफ़
तुम हो जहाँ
यहाँ कितने युगों से
बस धुआँ है
गहरा मटियाला धुआँ
जल रहा है कुछ
जो सपनों से ज्यादा क़ीमती
रंगों से दिलकश है
जो अपनों से भी अपना
सुरों से भी ज्यादा भाने वाला
उम्मीदों से ज्यादा दिलफ़ज़ा
कलियों से भी कोमल है शायद
जल रहा है
मैं जहाँ हूँ ...