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रिश्ता / लक्ष्मण पुरूस्वानी

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मेणु जियां नाजुक, ॻरी वेन्दा रिश्ता!
विछोड़े जी बाहि में, ॿरी वेन्दा रिश्ता!!

रख सन्दे ढेर में, छा दिसन्दा जदहिं!
सिकी सिकी सिक में, सड़ी वेन्दा रिश्ता!!

शीशे सन्दी दिल खे, न ठेस पहुचायो!
पइजी वेन्दी सीर, दरी पवन्दा रिश्ता!!

जुदाई जानिब जी, त जीअरे जलाए!
वञे हली सिरु त, टरी वेन्दा रिश्ता!!

ॿोड़े खणी समुंड, जान जिन्दु जोभनु!
तार मां तारूं बणी, तरी वेन्दा रिश्ता!!

दिनी दिल यार खे, वफा में ‘लक्षमण’!
मरी चाहे पवां, न मरी वेन्दा रिश्ता!!