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रिश्तें / मधुछन्दा चक्रवर्ती
Kavita Kosh से
रिश्तों के कई रंग होते हैं,
कुछ नाम के, कुछ बेनाम।
पर सबको पड़ता है निभाना
क्योंकि यही दुनिया का दस्तूर है।
और कुछ रिश्तें ऐसे होते हैं,
जैसे चलती बस की खिड़की
से देखों तो छूटते नज़ारे जैसे।
इन रिश्तों को निभाने में
सबका दिल तो रखना पड़ता है
पर सच है कि
इनको निभाने में दिल कई बार
टूटते हैं
कितना बड़ा सच है ये
पर समझते नहीं, कितने अजीब होते हैं
रिश्तें।