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रिश्तेदार शहर में / अनूप सेठी
Kavita Kosh से
जब बहुत तेज़ रोशनियाँ होती हैं
और बहुत सारे लोग रोज़ मिलने वाले
तो दूसरी तरफ पँहुचना समुद्र तट पर
किसी दूसरे शहर में पँहुचने जैसा होता है
जहां सिर उठाने से पहले
विचार धक्का मार के निकल जाता है
आप अवाक क्यों खड़े हैं
मसरूफ क्यों नहीं हैं
कभी-कभी शहर इतना मुक्त कर देता है कि
चङ्ढी पहन के घूम आओ
वो दोस्तों को गुलदस्तों में बदल देगा
आप नाचते हुए काट देंगे सारी रात चौपाटी पर
सँबंधी जबड़े कसके क्यों खड़े रहते हैं
स्वागत के लिए
सारी दुनिया से बिंदास दोस्ती कब होगी।
(1990)