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रिश्ते-2 / निर्मल विक्रम

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रिश्ते का जिस्म नहीं
वजूद होता है
छू सकना आसान नहीं
जितना कह सकता हूँ आसान
लांघनी पड़ती हैं कई छतें, दीवारें और जंगले
रिश्ते के अंत तक फिर भी मुश्किल है पहुँचना
हवा के झोंकों की तरह
उड़ जाता है
ज़रा-सा छू भर लेने से कोई भी रिश्ता
तब
उम्र के अभाव
फुटाव लेते हैं वसन्त बन कर
दरअसल तब
रिश्ता टोहने की नहीं
छूने की चीज़ होता है।

मूल डोगरी से अनुवाद : पद्मा सचदेव