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रिश्ते- नाते, रस्में- क़समें, मन की ख़ुशियाँ एक तरफ़ / मधु शुक्ला

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रिश्ते- नाते, रस्में- क़समें, मन की ख़ुशियाँ एक तरफ़
सारी दुनिया एक तरफ़ है, दिल की दुनिया एक तरफ़

सीख लिया है प्यार में मैंने, एक साथ हँसना - रोना
ख़ुशी के झरने एक तरफ़ हैं, ग़म का दरिया एक तरफ़

गुज़र चुके हैं साथ उम्र के आँखों से कितने मंज़र
मन की डाली पर बैठी वो चुनमुन चिड़िया एक तरफ़

राजपथों की चकाचौंध हो या जगमग चौराहों की,
अमराई की गन्ध लुटाती गाँव की गलियाँ एक तरफ़

एक तरफ़ है झोली में दुनिया भर की सारी दौलत,
बचपन के वो खेल - खिलौने, गुड्डे - गुड़िया एक तरफ़

तुम थे तो महका करते थे बेमौसम ही घर - आँगन,
बिना तुम्हारे बादल, बिजली, फूल, तितलियाँ एक तरफ़

यूँ तो पढ़े - सुने हैं मैंने और तिलिस्मी क़िस्से भी,
पर जादू की छड़ियों वाली उड़ती परियाँ एक तरफ़

एक तरफ़ हैं घाट - घाट पर, जमघट मेले - ठेलों के,
बही जा रही अपनी धुन में समय की नदिया एक तरफ़