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रिश्ते / केशव

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रिश्ते ही
जिन्दगी का ईंधन हैं
बताने
कोई नहीं आता
यह पहाड़ ढोना होता है अकेले
चुपचाप
कुछ घटने की प्रतीक्षा में

ज़रूरी नहीं
कि घटना
घटे माकूल मौसम में
और सच की नँगी पीठ पर बैठे
दोहराते रहें खुद को
सभी रिश्ते नशे जैसी हालत में

सही हालत में तो
यह रहता है सभी कुछ
जो फूल जैसा है
ज़िंन्दगी में
या ज़हर की तरह घुला हुआ

जीता रहा है वह
सहयात्री की उम्मीद में
जिसे खोजने के लिए
घुसा रहता है हर पल
किताबों की दरारों में
जहाँ खुद को ही पाता है
क्रॉस पर लटकता हुआ
अक्सर
अपनी ही बातें पढ़कर
बुनता है
एक ताज़ी सुबह का भ्रम

काश!
उसकी ज़िंन्दगी
इतिहास से अलग
कुछ और भी हो सकती
तो वह जंगली फूलों-सी
रिश्तों की भाषा
पढ़ सकता अँधी आँखों से भी
जीते जी रिश्तों के लिए
अँधे गायकों की तरह
न भटकता द्वार-द्वार
और पानी पर चलने के झूठ का
वरण न करता
जाने-अनजाने में

एक छोटी-सी गलती करके
डरने लगता है वह
मौत से और जिंदगी की डाल से
अंतिम सफेद कबूतर भी
उड़ जाता है

रिश्ते के लिए
कुछ भी पीने को तैयार
महअ एक सिगरेट पीकर
रह जाता है आखिरकार
तलाश जैसे खत्म हो जाती है
वह देखता रह जाता है
दवार पर टँगा अपना चित्र
प्रश्नचिन्ह
फैलता रहता है
फैलता रहता है
और एक दिन वह
बिना इधर-उधर देखे
कर जाता है प्रवेश
अँधेरी सुरँग में.