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रिश्ते / सुदर्शन रत्नाकर
Kavita Kosh से
बारिश में टपकती रही
घर के कोने की छत
और दीवारों में सीलन
भरती रही
बार बार करवाया प्लास्टर
पर हर बार पपड़ी उतरती रही
एक बार भरी जो सीलन
फिर निकली ही नहीं
क्योंकि छत की दीवार तो जोड़ी ही नहीं
पानी पत्तों को दिया
जड़ें सूखती रहीं
रिश्ते नाज़ुक होते हैं
छत की तरह नहीं सम्भालो तो
दिल में भरी सीलन
फिर जाती नहीं।