रिश्ते / हरीसिंह पाल
राह के रिश्ते
याद के बादल
कब तक टिक पाते हैं
समय बीत जाने पर बह जाते हैं,
अतीत की बाढ़ में।
मगर होता है उनका भी अस्तित्व
समय के पृष्ठ पर होती है उनकी भी मुहर
ये हमारे चाहने या नहीं चाहने से
मिट नहीं जाते, बस धुंधले हो जाते हैं
राह की बातें, राह की घातें, दे जाती हैं यादें
घर आकर रह जाती हैं बस उनकी यादें-दर-यादें
किंतु घर, घर होता है, राह नहीं
और राह को घर नहीं बनाया जा सकता
राह तो मंजिल पर पहुंचने का
माध्यम भर होती है।
जबकि घर, मंजिल होता है
एक ऐसी मंजिल, जो तन और मन को तृप्ति देती है।
इसलिए घर को घर ही रहने दें, राह न बनाएं
यदि राह बन गयी तो, मंजिल राह में भटक जाएगी।
मंजिल को भटकने से बचाने के लिए
राह को राह ही रहने दें
राह काटने के लिए होती है,
बसने या बसाने के लिए नहीं।