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रिश्तों का अर्थशास्त्र / कृष्ण कुमार यादव
Kavita Kosh से
रिश्तों के बदलते मायने
अब वे अहसास नहीं रहे
बन गये अहम् की पोटली
ठीक अर्थशास्त्र के नियमों की तरह
त्याग की बजाय माँग पर आधारित
हानि और लाभ पर आधारित
शेयर बाजार के उतार-चढ़ाव
की तरह दरकते रिश्ते
ठीक वैसे ही
जैसे किसी उद्योगपति ने
बेच दी हो घाटे वाली कम्पनी
बिना समझे किसी के मर्म को
वैसे ही टूटते हैं रिश्ते
आज के समाज में
और अहसास पर
हावी होता जाता है अहम् ।