भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रिश्तों की भीड़ में भी वो तन्हा खड़ा रहा / उर्मिलेश

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यदि इस वीडियो के साथ कोई समस्या है तो
कृपया kavitakosh AT gmail.com पर सूचना दें

रिश्तों की भीड़ में भी वो तन्हा खड़ा रहा
नदियाँ थी उसके पास वो प्यासा खड़ा रहा

सब उसको देख देख के बाहर चले गए
वो आईना था घर में अकेला खड़ा रहा

इस दौर में उस शख्स की हिम्मत तो देखिये
अपनों के बीच रहके भी ज़िन्दा खड़ा रहा

मेरे पिता की उम्र से कम थी न उसकी उम्र
वो गिर रहा था और मैं हँसता खड़ा रहा

बारिश हुई तो लोग सभी घर में छुप गए
वो घर की छत था इसलिए भीगा खड़ा रहा

उस घर में पांच बेटे थे,सब थे अलग अलग
इक बाप बनके उनकी समस्या खड़ा रहा

दुनिया को उसने रोशनी बाँटी तमाम उम्र
लेकिन वो अपनी आग में जलता खड़ा रहा