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रिश्तों के शीशे / अर्चना जौहरी
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रुकी रुकी साँसों में
झुकी झुकी आँखों में
एक बूँद पानी को
अब तलक भी प्यासी है।
जम गयी उदासी है।
रिश्तों के शीशे भी
धुन्धलाये लगते हैं
आँखों की कोरों से
सोग बन छलकते हैं
क्या है ये उलझन
ये कैसी बदहवासी है।
कौन किधर खो गया
ये रस्ता क्यूँ सूना है
पत्तों पर शबनम का
बोझ हुआ दूना है
हो हल्ला यूँ ही हुआ
बात तो ज़रा-सी है।