रिस्ता अपनापन के / प्रदीप प्रभात

आदमी रोॅ रिस्ता अपनापन के
हेकरा मेॅ कतेॅ मिठास होय छै।
फैलै छै हवा मेॅ कत्तेॅ खुशबू,
जबेॅ रात रानी आस-पास होय छै।
प्यार के चटाय पेॅ कोय बैठी केॅ
जबेॅ ‘पारो’ के यादों मेॅ ‘देवदस’ होय छै।
कहानी ‘कनुप्रिया’ रोॅ बार-बार,
नै कहोॅ तैय्योॅ विसवास होय छै।
सुनलेॅ छी प्रेम रोॅ स्याही कहियोॅ नै सुखै छै
फिरू जोॅ बदली जाय हलात तेॅ की बात छै।
सितारा सेॅ दोस्ती की करै छोॅ ‘प्रभात’
अगर जोॅ चांन मिली जॉव तेॅ की बात छै।
केकरा सेॅ सुनैहियोॅ, दिलोॅ रोॅ बात आपनोॅ
आबेॅ फूलोॅ रोॅ खुशबू विदा हुवेॅ लागलोॅ छै।
आवेॅ कविता केकरा केना सुनैहियौं
सुनबैया जबेॅ हिन्नेॅ-हुन्नेॅ भागी रहलोॅ छै।

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