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रीढ़ / राजीव रंजन

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आज मानव क्रम विकासवाद
में एक पायदान और चढ़ा है।
पूँछ के बाद अब उसने रीढ़
को अलविदा कहा है।
सफलता के राह में इस रोड़े
को सर्वप्रथम राजनीतिज्ञों ने पहचाना है।
आज इस रीढ़हीनता को पूरे
समाज ने मनोयोग से अपनाया है।
नाम, ईनाम खातिर सम्मान
छोड़ रहा आज इंसान है।
रीढ़हीनता ही आज आधुनिकता
की बनी पहचान है।
कौन कहता है खड़ा नहीं
हो सकता रीढ़विहीन इंसान।
आज वही चढ़ रहा धड़ा-धड़
सफलता के सोपान।
आज आपके सामने मैं
आदि मानव बन खड़ा हूँ।
क्योंकि आज भी मैं
रीढ़ की उपयोगिता पर अड़ा हूँ।