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रीता मन / शैलप्रिया
Kavita Kosh से
मौसम कराहता है,
हवा की पोर-पोर में समाया
संक्रामक दर्द
डँसता है
मुझको
रीता मन
स्नेह की बँद
ढूँढ़ता है
जीने के लिए
मुझे लोग अच्छे लगते हैं
लेकिन यह जानती नहीं
कि कहाँ हैं अपने लोग ?
हर स्थल पर अपने
को एकाकी पाती हूँ