भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रीति-ग़ज़ल / कालीकान्त झा ‘बूच’
Kavita Kosh से
भरल भवधार छै सजनी कोना पदवार हम करबै
पड़ल सब भार छै सजनी, कोना पतवार हम धरबै
बनलि हम रूप केर रानी, मुदा पंथक भिखारिन छी
जड़ल घटवार छै सजनी, कोना इजहार हम करबै
सुभावक नाव पर हमरा जखन धऽ कऽ चढा देतै
अड़ल इकरार छै सजनी, कोना इनकार हम करबै