भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रुके पाँव मेरे ज़रा चलते-चलते / कैलाश झा ‘किंकर’
Kavita Kosh से
रुके पाँव मेरे ज़रा चलते-चलते
पड़ी कान में जो सदा चलते-चलते।
मिले आप तो दिल खिला फूल जैसा
मयस्सर हुआ आसरा चलते-चलते।
मेरी ज़िन्दगी में अहम मोड़ आया
किया आपने फ़ैसला चलते-चलते।
निशानी मुहब्बत की सालों पुरानी
दिलाती है यादे-वफ़ा चलते-चलते।
भले खूबसूरत नहीं ख़ूब हो तुम
मगर दिल तुम्हीं पर गया चलते-चलते।
जमाने की खुशियाँ ख़ुशी दे न पायीं
ग़मों से मेरा दिल भरा चलते-चलते।