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रुके रहेंगे खाने तक / विनोद तिवारी
Kavita Kosh से
रुके रहेंगे खाने तक
अपने क्या बेगाने तक
यह जो साफ़ सफ़ाई है
मंत्री जी के जाने तक
अब क्या प्यार सिखाओगे
बात गई जब थाने तक
देश भक्त है हर कोई
बस जन-गण-मन गाने तक
धन-लिप्सा के भँवरों में
डूबे कई सयाने तक
यह बहार हैं ख़ुशियाँ हैं
पंछी के उड़ जाने तक
रिश्ते आज के रिश्ते हैं
केवल हाथ मिलाने तक