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रुको सरकार ! / सुरेन्द्र रघुवंशी

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अपनी कैबिनेट बैठक में
मनमाने प्रस्ताव पारित करने से पहले
रुको सरकार ! और देखो
खेत के उस पेड़ की ओर
जिस पर डाला जा रहा है एक और फन्दा
थककर हार चुके हाथों के द्वारा
देखते हुए अन्तिम दृश्य उन आँखों के द्वारा
जिनमें उम्मीद की कोई रोशनी नहीं बची

उस फन्दे की ही नहीं अपने मन की भी गाँठ खोलो
कि इस कृषक पुत्र के दादा ने
अपने खेत में यह पेड़ नहीं लगाया था
अपने नाती की आत्महत्या के लिए

सोचो सरकार ! कुछ सम्वेदनशील होकर सोचो
अपने ह्रदय से स्वार्थ की कीचड़ निकालकर
उसमें मनुष्यता का निर्मल जल भरो
कुर्ते की बजाय इरादों की सफ़ेदी बढ़ाओ
और अपनी फ़ैशन को बचाने के स्थान पर
जनाधिकारों सहित जनजीवन को बचाओ

प्राकृतिक सिद्धान्त के बहाने ही सही
पर विचार करो सरकार !
पेड़ों पर तो ख़ुशियों के फूलों में
समृद्धि के फल लगते आए हैं हमेशा से
पर तुम ये कैसा विनाशकारी मौसम ले आए
कि इन पर लाशें लटकने लगीं

अविलम्ब खोलो इस फन्दे की गाँठ को
और इस पेड़ की जड़ों में कर्तव्यनिष्ठा का
पानी डालो निरन्तर कि तुम माली हो
जिससे ख़त्म हो पतझड़ का मौसम
और फिर उत्तर आई आगत हरियाली पर
पड़ जाएँ विश्वास के झूले
गाते हुए लोकतन्त्र की विजय का गीत