रुक्मिणी परिणय / तेसर सर्ग / भाग 2 / बबुआजी झा 'अज्ञात'
ओ बापक बात निरस्कृत कय
जनताक विचार बहिष्कृत कय।
हमरा मनमे दुख संचित कय
की चाहथि व्यर्थ अनर्थ करय?
जे नीच स्वभावक लोक रहय
ओ नीकहुके अधलाह कहय।
छल-छद्मक बाँट तुला निज लय
बड़ ढीठ जकाँ अनका तौलय।
आदर्श पुरुष रघुनाथ छला
लंकाधिप नीच कहैत रहय।
निज कर्म कतेक जघन्य महा-
शठ ध्यान कि तैपर दैत रहय?
दिग्भ्रान्तक लेल समस्त दिशा
विपरीत, परन्तु न झूठ गनय,
यदि लोचनमे अछि पित्त प्रखर
सभ पीयर विश्वक वस्तु बनय।
डबरामे बसय नित घो धही लय
मुनि जकाँ निरन्तर ध्यान धरय।
बगुला सभ से द्विजवंश-प्रशंसित
हंसक गुण सुनि ढेर हँसय।
हमर सहोदर नीच नरेशक
साहि घाटिसँ दूरि गेल छथि।
कृष्णक संग कनारि राखि सखि!
उद्यत निज दुर्गतिक लेल छथि।
दुष्ट प्रवृत्तिक लोक जखन बनि
निष्ठुर अत्याचार करै अछि।
दलित तिरस्कृत उत्पीड़ित भय
मानवता चीत्कार करै अछि।
पालक पुरुष सशक्त तखन भू-
मंडलपर अवतार लैत छथि।
अन्धतमस कय दूर दयामय
नूतन एक प्रकाश दैत छथि।
पहिलुक दैत्य असंख्य अवनि पर
सम्प्रति सखि! अवतीर्ण भेल अछि।
साधारण जन जीवन दुस्तर
दया धर्म सभ शीर्ण भेल अछि।
निराकार भगवान प्रजा जन-
लेल भेल साकार कृष्ण छथि।
भक्त जनक शृंगार, असुर कुल
धूमकेतु-संहार कृष्ण छथि।
पूतनाक सन राक्षसीक बध
की कोनो शिशुसँ अछि संभव?
के पहाड़ कर उठा लैत अछि?
कय सकैत अछि इन्द्र परभव?
बाल्य काल के कालिय नागक
फणपर अनथक नाच करै अछि?
दावानल के लेत पीबि बन
जीव जन्तु गण जखन जरै अछि?
तृणावर्त अघ व्योमवत्स वक
केशिकादि रक्तप कुल हन्ता।
कहू, सखी के हैत अल्पवय
बाल अभय बिनु विश्वनियन्ता?
जलमे डूबि कतेक मरै अछि
के अबैत अछि प्रेतलोकसँ।
गुरुसुत केशव आनि दैत छथि
मुक्त करै छथि पुत्रशोकसँ।
अगणित शूर वीर नर निश्चर
छल पहिनहिंसँ सज्ज नृशंसक।
लय सकैत छल प्राण आन के
सभा मध्य मथुराधिप कंसक?
आदित्य उगल छथि अम्बरमे
की मोल कोनो लघु नक्षत्रक?
विधुवंश-विभूषण की उदय
गणना की चैद्य नृपति-पुत्रक?
सुत जेठ शुभाशुभ जे कहथिन
निरुपाय पिताजी से करता।
हा दैव! तखन असहाय जनक
उद्धार कष्टसँ के करता?
ललित लोचनसँ टपाटप अश्रु सोती
कमल दलसँ स्रस्त जहिना स्वच्छ मोती।
मलिन आनन ज्योति अतिशय दीन भेली
दीनबन्धुक ध्यानमे लवलीन भेली।
तेसर सर्ग समाप्त