रुक्मिणी राधा / श्वेता राय
सुन लो सुनलो प्यारों सुन लो, अप्रतिम कथा पुरानी है।
रीत प्रीत का ज्ञान मिलेगा, ऐसी उसकी वाणी है॥
पल पल जिससे पावन होगा, ऐसी कथा सुनाऊँगी।
सारे अपनों के जीवन में, खुशियाँ मैं बिखराऊँगी॥
राधा कान्हा इक पूरक थे, इनकी प्रीत सुहानी थी।
जीवन को जो दे दे गति इक, ऐसी प्रेम रवानी थी॥
बचपन का ये प्यार अनूठा, जीवन से भी प्यार था।
साथ कहाँ थे दोनों फिर भी, जीवन साथ गुजारा था॥
गये द्वारिका जब कान्हा तो, छूटा सारा खेला था।
हिय में उनके धड़कन जैसे, बसता पर सब मेला था॥
ग्वाल बाल सब छूटे उनसे, दुनियावी अब डेरा था।
कहने को थे दूर सभी पर, सबका वहीँ बसेरा था॥
राजभवन में कान्हा रहते, रुक्मिणी उनकी रानी थी।
बन बैरागन जीवन जीना, राधा मन में ठानी थी॥
दोनों का विश्वास अमर था, इनकी अमर कहानी है।
सुनकर जीवन धन्य करो तुम, सबको ही मनभानी है॥
राजपाठ में खोये कृष्णा,हिय में बसती राधा थीं।
कहने को सम्पूर्ण कृष्ण थे, राधा उनकी आधा थीं॥
रुक्मिणी हरदम सोचा करती, राधा में क्या ऐसा है।
रूप रंग क्या मेरा सारा, राधा के नहि जैसा है॥
रानी के इस द्वेष भाव पर, कृष्ण मंद मुस्काते थे।
राधा का कर कर के वर्णन, उनको बहुत खिझाते थे॥
रानी कान्हा को कब समझी, बातों को सच मानी थी।
मिले बिना राधा को वो, अपनी सौतन ठानी थी॥
वन वन पग से नापें राधा, कृष्ण नगर जब आईं थीं।
मिलना चाहूँ महाराज से, खबर शीघ्र भेजवाईं थीं॥
राधा का सुन नाम श्याम बस, सरपट दौड़े भागे थे।
तन का अपने ध्यान नही था, स्वंय, स्वंय से आगे थे॥
नयन मिले जब उन दोनों के, बदरी नैन समाई थी।
आँसू की उमड़ी जो नदियाँ, उनकी प्रीत कमाई थी॥
बिन बोले, बोले कान्हा प्रिय!, कैसा हाल बनाई हो?
खोज खबर बिन दिये कहाँ थी, मुझको बहुत रुलाई हो॥
गिरधारी इतने व्याकुल पर, राधा तो मुस्काती थी।
रानी ये सब देख देख कर, मन ही मन जल जाती थी॥
चीर फटी है वैरागन की, पैर विवाई फाटी है।
कान्हा के पर प्रीत भाव ने, सारी दूरी पाटी है॥
लिया हाथ में हाथ प्रिया का, अंतर्मन अकुलाया था।
राजभवन में लेके आये, हिय उनका हरषाया था॥
कैसा है ये प्रेम अनूठा, क्यों राधा ये प्यारी है।
आज रात्रि को जानूंगी मैं, रानी की तैयारी है॥
कृष्ण भवन में लगता मानो, वो ही दिवस दीवाली थी।
बात बात पर रोते दोनों, छाई पर खुशहाली थी॥
रात्रि भोज संपन्न हुआ फिर, सोने की तैयारी थी।
विदा बोल विश्रामभवन में, जाने की अब बारी थी॥
दिन भर के भावों से पलकें, होती जाती भारी थीं।
पुलकित मन से राधा की अब, सोने की तैयारी थी॥
तभी सेविका आ कर बोली, रानी मिलने आईं हैं।
कुछ विशेष है जिसको देने, वो खुद चलकर आईं हैं॥
राधा बोलीं घर है उनका, आज्ञा फिर क्या लेना है।
जो चाहें वो आकर दे दें, मुझको तो बस लेना है॥
रानी आगे बढ़ कर बोलीं, आज असल तय होना है।
तेरे मन में लिए श्याम के, कितना खाली कोना है॥
मंद मंद राधा मुस्काई, उस पल कुछ नहि बोली वो।
बात समझ कर सारी फिर वो, अधरों को हैं खोली वो॥
कोने की तो बात न जानू, जीवन उन पर वारा है।
श्वास श्वास की हर लहरी पर, उनका नाम पुकारा है॥
सुन कर बातें राधा की ये, रानी जल भुन जाती हैं।
गरम दूध का इक प्याला वो, दासी से मंगवाती हैं॥
फिर सम्मुख हो कर राधा के, बोली इसको पी जाओ।
श्वास एक मत तुम लेना फिर, मन में चाहे घबराओ॥
रानी की ये बातें सुनकर, प्याला अधर लगाया था।
एक श्वास में पी डाला सब, तनिक न जी घबराया था॥
हतप्रभ रानी चली गईं फिर, समझ कहाँ कुछ पाईं थी।
अजब प्रीत है इन दोनों की, खुद को खुद समझाईं थीं॥
सैय्या पर परमेश्वर लेटे,मंद मंद मुस्काते हैं।
उलझन में रानी को देखा, अपने पास बुलाते हैं॥
बोले रानी पांव दबा दो, पीर बहुत ही तारी है।
कल मिलना है राधा से अब, रात बहुत ये भारी है॥
देव चरण पर दृष्टि गई जब, रानी चीखी चिल्लाई।
छालों से था पैर भरा, औषधि हैं वो मँगवाई॥
बोली भगवन ऐसा कैसे, दुर्दिन कैसे छाये हैं।
पीर हो रही होगी भारी, छाले ये कब आये हैं॥
कान्हा बोले कुछ पल पहले, पैरों में छाले आये।
मेरे मन में जब राधा के, दर्द भरे नाले आये॥
रहती है वो अंतस मेरे, चरण चाह करती वो है।
पीर कभी जब उसको होती, नयनो से बहती वो है॥
सुनकर कृष्णा की ये बातें, रानी मन में डोली थीं।
एक श्वास में कह डाली सब, राधा से जो बोली थीं॥
परख प्रीत के कारण रानी, हुई शर्म से पानी थी।
राधा रानी और कृष्ण की, अद्धभुत प्रेम कहानी थी॥