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रुक जाए सरे-राह वो मज़दूर नहीं है / अनु जसरोटिया

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रुक जाए सरे-राह वो मज़दूर नहीं है
दिन भर की तकानों से भी ये चूर नहीं है

बेटी के जनम पर भी मनाये कोई ख़ुशियाँ
हरगिज़ अभी दुनिया का ये दस्तूर नहीं है

ख़ुद अपने मुक़द्दर को मैं अब कैसे बदल दूँ
क़ुदरत को ये शायद अभी मन्ज़ूर नहीं है

दीवाना है, नादान है या है कोई मजज़ूब
मत इस को सताओ कि ये मग़रूर नहीं है

ख़ुद अपने ही हाथों से लिखे हम ने अन्धेरे
ऐसा नहीं ये रौशनी भरपूर नहीं है

लगता है सरे-शाम ही उतरी हैं बहारें
दिल वस्ल के आलम में है महजूर नहीं है

ख़ुद अपने ही हाथों से वो इतिहास लिखेगा
इँसान के हाथों से वो दिन दूर नहीं है ।