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रुख़ और मंज़िल / प्रफुल्ल कुमार परवेज़
Kavita Kosh से
इस वक्त
अंधड़ है
रुख़ उस ओर है
जिस ओर गहरी लंबी साँसे
खींच रहा है
भारी-भरकम स्वार्थ
टूटने की हद तक
झुक रहे हैं पेड़
बेमौसम झड़ रहे हैं पत्ते
जिस ओर चलना सुविधा है
अंतिम पड़ाव
अंतहीन पेट है