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रुख़ में गर्द-ए-मलाल थी क्या थी / खलीलुर्रहमान आज़मी

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रुख़ में गर्द-ए-मलाल थी क्या थी
हासिल-ए-माह-ओ-साल थी क्या थी

एक सूरत सी याद है अब भी
आप अपनी मिसाल थी क्या थी

मेरे जानिब उठी थी कोई निगाह
एक मुबहम सवाल थी क्या थी

उस को पाकर भी उस को पा न सका
जुस्तजू-ए-जमाल थी क्या थी

दिल में थी पर लबों तक आ न सकी
आरज़ू-ए-विसाल थी क्या थी

उम्र भर में बस एक बार आई
स'अत-ए-लाज़वाल थी क्या थी