भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रुत की नई किताब-सी खुलने लगी है वह / शलभ श्रीराम सिंह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गर्मी की दोपहर का रंग ज़िस्म पर लिए
ख़ुशबू की तरह साँस में घुलने लगी है वह

देखा निगाह भर के तो पलकें फड़क उठीं
रुत की नई किताब सी खुलने लगी है वह


रचनाकाल : 25 अगस्त 1984

शलभ श्रीराम सिंह की यह रचना उनकी निजी डायरी से कविता कोश को चित्रकार और हिन्दी के कवि कुँअर रवीन्द्र के सहयोग से प्राप्त हुई। शलभ जी मृत्यु से पहले अपनी डायरियाँ और रचनाएँ उन्हें सौंप गए थे।