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रुत की नई किताब-सी खुलने लगी है वह / शलभ श्रीराम सिंह
Kavita Kosh से
गर्मी की दोपहर का रंग ज़िस्म पर लिए
ख़ुशबू की तरह साँस में घुलने लगी है वह
देखा निगाह भर के तो पलकें फड़क उठीं
रुत की नई किताब सी खुलने लगी है वह
रचनाकाल : 25 अगस्त 1984
शलभ श्रीराम सिंह की यह रचना उनकी निजी डायरी से कविता कोश को चित्रकार और हिन्दी के कवि कुँअर रवीन्द्र के सहयोग से प्राप्त हुई। शलभ जी मृत्यु से पहले अपनी डायरियाँ और रचनाएँ उन्हें सौंप गए थे।