मेरे महादेव तू है मुझमें
तभी मैं तुझसे ज्योतिर्मय हूँ
तू चक्षु मध्य आबद्ध मेरे
हुए ज्योतिर्मय, मैं शिवमय हूँ...
आसक्त हृदय यह रुद्र तेरा
रुद्राक्ष वरण कर जान लिया
जो शिव तू है, मैं शक्ति हूँ
रुद्राणी स्वयं को मान लिया...
लौकिकता लुप्त हुई तन से
लगी प्रेम लगन, मगन मन है
किया निराकार स्वीकार मुझे
अद्भुत अनुभव यह अनुपम है...
यहाँ पार्थिवकता का भाव नहीं
अद्वैत-आत्म का संगम है
अनुभूति अनंत अद्वितीय है
आत्मिक आनंद विहंगम् है...