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रुला के गया, सपना मेरा / शैलेन्द्र

रुला के गया, सपना मेरा
बैठी हूँ कब हो सवेरा
रुला के गया, सपना मेरा
बैठी हूँ कब हो सवेरा

वही हैं गम-ए-दिल, वही हैं चन्दा तारे
वही हम बेसहारे
आधी रात वही हैं, और हर बात वही हैं
फिर भी ना आया लुटेरा

रुला के गया, सपना मेरा
बैठी हूँ कब हो सवेरा

कैसी ये जिन्दगी, के साँसों से हम ऊबे
के दिल डूबा, हम डूबे
एक दुखिया बेचारी, इस जीवन से हारी
उस पर ये गम का अन्धेरा

रुला के गया, सपना मेरा
बैठी हूँ कब हो सवेरा