भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रुष्ट हैं अन्न की देवी / केदारनाथ अग्रवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रुष्ट हैं
अन्न की देवी
अन्नपूर्णा
रिक्त है
पेट का
पोरबंदर
हड़ताल से
खाली
खड़े हैं हम
जहाज,
लंगर डाले,
परिवार के
सिंधु में

रचनाकाल: २८-०६-१९७६, मद्रास