रुह जब बे-लिबास होती है
नग्नता देह-देह रोती है
ज़िन्दगी मौत के मरुथल के
वासनाओं के बीज बोती है
दिल में कुछ और शब्द होते हैं
लब पे कुछ और बात होती है
मूल्य बाज़ार में भटकते हैं
चेतना सूलियों पे सोती है
मेरी आँखों गिरे तो पानी है
तेरी आँखों का अश्क मोती है