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रूंख रा छोड़ा / नीरज दइया

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म्हारी बात-बात मांय
मा नै निगै आवै
जीस रो लटको
मा कैवै-
थारा लखण बां दांई है
अर गळगळी हो जावै।

म्हनै लखावै
जीसा रै गयां पछै
मा फगत म्हनैं ई भोळा सकै है
आंसुवां रो भार।
किणी बेटै सारू
इण गत नै अंवेरणो
घणो अबखो काम हुवै।
म्हैं नीं बदळ सकूं खुद नै
जे बदळूं,
म्हारी कलम सूं
खूट जावैला- कवितावां
मा खातर म्हैं
अर म्हारै खातर आ कलम
निसाणी है जीसा री।