भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रूंख रो रंग / मधु आचार्य 'आशावादी'
Kavita Kosh से
कदैई देखो तो सरी
रूंख रो
ऊजळो रूप
सूरज री किरणां मांय
उण मांय दीसै
मैनत करणियै मजूर रो रंग
टपकतो पसीनो
थां कदैई देख्यो ?
बिरखा मांय
रूंख रा खुल जावै
पाना-पाना
अर उण मांय झांको
तो निजर आवै
टाबरी हंसी, मुळकणो।
आंधी मांय दीसै
बो गबरीलो जवान
ऊभो हुवै जिको
दुसमी साम्ही छाती ताण।
थांरे इण रूंख नै
कदैई देखो तो सरी
नित नूंवा रंग लियां
दीसैला जीवण रो नूंवो ढंग।