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रूठे हुए लोगों को मनाना नहीं आता / सिराज फ़ैसल ख़ान

रूठे हुए लोगों को मनाना नहीं आता
सज्दे के सिवा सर को झुकाना नहीं आता

पत्थर तो चलाना मुझे आता है दोस्तो
शाख़ों से परिन्दों को उड़ाना नहीं आता

नफ़रत तो जताने में नहीं चूकते हो तुम
हैरत है तुम्हें प्यार जताना नहीं आता

मैं इसलिए नाकाम मोहब्बत में रह गया
झूठा मुझे वादा या बहाना नहीं आता

सारे शहर को राख मेँ तब्दील कर गया
कहते थे उसे आग लगाना नहीं आता

होटों पे सजी रहती है मुस्कान इसलिए
सीने मेँ मुझे दर्द छुपाना नहीं आता