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रूठ गयी तू जबसे सावन,रूठ गयी है बहार / रमेश 'कँवल'

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रूठ गर्इ तू जब से 'सावन' रूठ गर्इ है बहार
करे अब कैसे प्रीत सिंगार

सूख गये अंखियों के समन्दर ऐसी लगी प्रीत की आग
डोर आस की टूट न जाये, फूट न जायें मेरे भाग
मन के गुलशन में निर्मोही कर दे प्रेम फुहार
करे अब कैसे प्रीत सिंगार

चांद सितारे मांग में तेरी भर दूं ये औक़ात नहीं
फूल से नाज़ुक बिस्तर दूंगा तुझको ऐसी बात नहीं
पतझड़ के हर मौसम में हां दूंगा तुझे बहार
करे अब कैसे प्रीत सिंगार

तू मुझको मिल जाय अगर मिल जाय ज़माने की खुशियां
तू जो साथ रहे, हर ग़म में, रोज़ मनाउं रंग रलियां
सीधा सादा हूं, मुफ़्लिस हूं लेकिन हूं दिलदार
करे अब कैसे प्रीत सिंगार

हीरा मोती लाल जवाहर प्रेम-मिलन की राह में क्या
सारी खुशियां लुटा दूं तुझ पे छोड़ दूं मैं सारी दुनिया
मेरे दिल के मालिक कर ले मेरी वफ़ा स्वीकार
करे अब कैसे प्रीत सिंगार

झूम रहा है पवन बसंती, कलियों ने ली अंगड़ार्इ
यौवन कलष छलक उठे हैं रूत मिलन की आर्इ
ऐसे में दे दे दर्शन कर ले सोलह सिंगार
करे अब कैसे प्रीत सिंगार