भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रूपजी : तीन / पवन शर्मा
Kavita Kosh से
गळी मांय
इस्कूलिया टाबरां नै
भाजतो देख
मुळकै रूपजी
मींदर सूं बड़ता-निसरता
मिनखां सूं
राम-रमी करता
मुळकै रूपजी
बस अड्डै री सून्याड़ सूं
बातां करता
खींवजी-भींवजी रै
कन्नै बैठ्या
मुळकै रूपजी
बाड़ री ओट मांय
तास रमता
मोट्यारां नै जोंवता
मुळकै रूपजी
नन्दू सेठ री डेरी माथै
फैट रै हिसाब मांय
उलझयोड़ा
साथी-संगळया नै
बिलमावता
मुळकै रूपजी
पण
खूणै मांय
चुपचपातै चूल्लै कानीं
जोंवतां
फीका पड़ जावै रूपजी