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रूपायित / कंस्तांतिन कवाफ़ी
Kavita Kosh से
अपने काम में मैं मगन रहता हूँ, प्यार करता हूँ इसे ।
लेकिन आज मैं हताश हूँ कि यह कितना आहिस्ते है ।
दिन ने मुझ पर असर डाला है । इसका चेहरा
गहराता सियाह है । तेज़ हवाएँ और धारासार बारिश ।
बजाय लिखने के तासीर देखने की है ।
इस चित्र में, मैं अब निहार रहा हूँ
एक हसीन छोरे को
जो लेटा है फ़व्वारे के पास,
थका-मांदा दौड़ लगाने से ।
कितना छैला है यह छोरा,कितनी आलोकित है दोपहर
इसे अपने में लिए लोरी दे सुला रही ।
ऐसे मैं देर तक बैठा रह चाव से आँखें सेकता हूँ,
इसे रचने के यत्न से कला ज़रिए बहाल होता ।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : पीयूष दईया