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रूपे के महल धूपे अगर उदार द्वार / देव
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रूपे के महल धूपे अगर उदार द्वार ,
झाँझरी झरोखा मूँदे चारु चिकराती मैँ ।
ऊध अधमूल तूल पटनि लपेटे मूल ,
पटल सुगन्ध सेज सुखद सोहाती मैँ ।
सिसिर के शीत प्रिया पीतम सनेह दिन ,
छिन सो बिहात देव राति नियराती मैँ ।
केसरि कुरँग सार अँग मे लिपत दोऊ ,
दोऊ मे दिपत और छिपत जात छाती मैँ ।
देव का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।