रूप का सोना न धन की प्यास है / रोशन लाल 'रौशन'
रूप का सोना न धन की प्यास है
जिन्दगी तो सिर्फ एक एहसास है
मेरे दिल में एक नन्ही आस है
आदमीयत पर जिसे विश्वास है
आस्था है, प्रेम है, विश्वास है
इनमें से क्या कुछ तुम्हारे पास है
जिनके घर वातानुकूलित हैं यहां
जेठ भी उनके लिए मधुमास है
देश की अय्याश सत्ता के लिए
निर्धनों की भूख भी परिहास है
झूठ को भी सच बना सकता है वो
लेखनी शासन की जिसके पास है
तेरी बातों में है बीते कल का झूठ
मेरे हाथों में नया इतिहास है
दुख गरीबी यातना शोषण दमन
आज के जनतंत्र की मीरास है
हर कथन गूंगे का गुड़ साबित हुआ
हर अमल नंगा विरोधभास है
मौत के सौदागरों की मंडियाँ
”जिन्दगी का सच यहां बकवास है
सो गया फुटपाथ पर चिथड़े बिछा
क्या करे उसका यही आवास है
कौन मानेगा कि सिर पर आग है
जब तलक तलवों के नीचे घास है
कुछ बिगड़ता तो नहीं बहरूप से
आईने का टूटता विश्वास है
कोई दशरथ है न कोई कैकयी
फिर भी जीवन राम का वनवास है
कामयाबी सबको ‘रौशन’ चाहिए
प्रश्न ये है धैर्य किसके पास है